एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। इस विवाद के निपटारे के लिए भगवान शिव एक विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए और दोनों को चुनौती दी कि जो इस स्तंभ के आदि और अंत का पता लगा लेगा, वही श्रेष्ठ होगा।
ब्रह्मा जी हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर उड़ चले, और विष्णु जी वाराह का रूप धारण कर नीचे की ओर जाने लगे। विष्णु जी को स्तंभ का अंत नहीं मिला और उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली।
लेकिन ब्रह्मा जी ऊपर जाते हुए एक केतकी का फूल नीचे गिरता हुआ देखा। उन्होंने केतकी के फूल से कहा कि वह झूठ बोले और यह कहे कि ब्रह्मा जी ने स्तंभ का ऊपरी सिरा देख लिया है। केतकी के फूल ने ऐसा ही किया।
सर्वज्ञ भगवान शिव ने सच्चाई जान ली और केतकी के फूल को श्राप दिया कि वह कभी भी उनकी पूजा में उपयोग नहीं किया जाएगा। साथ ही, उन्होंने ब्रह्मा जी को भी श्राप दिया कि उनकी पूजा नहीं होगी।
हालाँकि, केतकी के फूल की मीठी सुगंध के कारण, इसे आज भी भगवान गणेश की पूजा में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसे उल्टा करके चढ़ाया जाता है, ताकि इसके झूठ की याद बनी रहे।
यह कहानी सत्यनिष्ठा और विनम्रता के महत्व को दर्शाती है, यहां तक कि भक्ति में भी। यह हिंदू धर्म में पूजा अनुष्ठानों में सुगंध और प्रसाद के महत्व को भी उजागर करती है।