शिव पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल शून्य और अंधकार था। इस शून्य में एक अंडा प्रकट हुआ, जिसे ब्रह्मांड कहा गया। इस अंडे के भीतर, स्वयंभू भगवान शिव निराकार रूप में विराजमान थे। अनंत काल तक इसी स्थिति में रहने के बाद, शिव ने सृष्टि रचने का निर्णय लिया।
सर्वप्रथम, शिव ने अपने दाहिने भाग से शक्ति को प्रकट किया। शक्ति, जो आदि पराशक्ति के नाम से भी जानी जाती हैं, सृष्टि की मूल ऊर्जा और शिव की अर्धांगिनी हैं। शिव और शक्ति के मिलन से, सृष्टि के बीज का रोपण हुआ।
शिव ने अपने तेज से त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – की रचना की। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता, विष्णु को पालनहार और शिव को संहारक का दायित्व सौंपा गया। इस प्रकार, त्रिदेवों के माध्यम से सृष्टि का चक्र आरंभ हुआ।
ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्रों – सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार – की रचना की। इन ऋषियों ने सृष्टि के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद, ब्रह्मा ने दक्ष प्रजापति की रचना की, जिनसे आगे चलकर देवताओं, असुरों और मनुष्यों की उत्पत्ति हुई।
शिव पुराण के अनुसार, इस प्रकार सृष्टि का आरंभ हुआ। यह कथा हमें सृष्टि के मूल में शिव और शक्ति की अद्वितीय भूमिका, त्रिदेवों के महत्व, और सृष्टि के चक्र के बारे में बताती है।