रहस्य 6 प्रकार के पारद शिवलिंग का

पारद शिवलिंग निर्माण में विभिन्न तत्वों का उपयोग होता है, जिनमें अबरताल (Arsenic), मृगालक (Phosphorus), अपन्हुत (Cupric Metacide), जिरायत (Tridentium), वज्रदंती (Impure Ore), और कज्जल (Zinc Carbate) शामिल हैं। प्रत्येक तत्व के विशिष्ट गुण और अनुपात होते हैं, जो शिवलिंग की प्रभावशीलता को प्रभावित करते हैं।

पारद शिवलिंग निर्माण में विभिन्न तत्वों का उपयोग होता है, जिनमें अबरताल (Arsenic), मृगालक (Phosphorus), अपन्हुत (Cupric Metacide), जिरायत (Tridentium), वज्रदंती (Impure Ore), और कज्जल (Zinc Carbate) शामिल हैं। प्रत्येक तत्व के विशिष्ट गुण और अनुपात होते हैं, जो शिवलिंग की प्रभावशीलता को प्रभावित करते हैं। निर्माण प्रक्रिया जटिल है और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें विषैले तत्वों को संभालना शामिल होता है। कुछ शिवलिंग जैसे कि वज्रदंती दुर्लभ और महंगे होते हैं, जबकि जिरायत अधिक सामान्य है, लेकिन इसका कोई विशेष लाभ नहीं होता है।

1. अबरताल (Arsenic):

  • यह एक प्रकार का विष है, जिसे आर्सेनिक के नाम से भी जाना जाता है।
  • पारे के साथ संयोग करने पर यह विषघ्न बन जाता है, अर्थात विष के प्रभाव को नष्ट करता है।
  • पारा और अबरताल का मिश्रण शीघ्र ही ठोस रूप धारण कर लेता है।
  • शास्त्रों के अनुसार, अबरताल से निर्मित शिवलिंग सभी पापों का नाश करने वाला होता है।
  • प्राकृतिक अवस्था में पाया जाने वाला अबरताल ही उपयोगी होता है, शोधित आर्सेनिक हानिकारक हो सकता है।
  • सर्वोत्तम परिणाम के लिए अबरताल का कणीय अयन 122:2200 होना चाहिए।
  • इस प्रकार के शिवलिंग का वजन तीन छटाक से अधिक नहीं होना चाहिए।

2. मृगालक (Phosphorus):

  • यह एक अति ज्वलनशील पदार्थ है, जिसे फास्फोरस के नाम से भी जाना जाता है।
  • प्राकृतिक अवस्था में यह सुषुप्त होता है, लेकिन पारे के साथ मिलकर सक्रिय हो जाता है।
  • पारद के साथ मृगालक को मिलाना थोड़ा कठिन होता है, इसलिए इसमें हाड़केशर या जिल्कोनाईट मिलाया जाता है।
  • मृगालक से शिवलिंग बनाना चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि इसमें विस्फोट का खतरा रहता है।
  • शास्त्रों में इसे “त्रिताप ह़र” कहा गया है, अर्थात यह तीनों तापों (दैहिक, दैविक और भौतिक) का नाश करता है।
  • पारद शिवलिंग निर्माण के लिए मृगालक का कणीय अयन 988:453 होना चाहिए।
  • इस शिवलिंग का वजन एक पाँव से अधिक नहीं होना चाहिए।

3. अपन्हुत (Cupric Metacide):

  • इसे तूतफेन के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह पारद शिवलिंग का सबसे उत्कृष्ट स्वरूप माना जाता है।
  • जिस घर में इसकी पूजा होती है, वहां कलियुग का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • पारद शिवलिंग निर्माण में अपन्हुत का कणीय अयन 2400:3600 होना चाहिए।
  • इसके वजन का कोई निश्चित प्रमाण नहीं है।

4. जिरायत (Tridentium):

  • इसे पहाड़ी सुहागा भी कहते हैं।
  • यह बहुत आसानी से बन जाता है क्योंकि यह कम ताप पर भी पारे में मिल जाता है।
  • लोग इसे अक्सर शौकिया तौर पर घरों में रखते हैं, लेकिन इसका कोई विशेष लाभ या हानि नहीं होती है।
  • यह चमकीला होता है, लेकिन पानी के संपर्क में आने पर बदबूदार गंध उत्पन्न करता है।
  • इसे पूजा के लिए नहीं रखा जाता है और इसे शीशे के मर्तबान में बंद करके रखना चाहिए।

5. वज्रदंती (Impure Ore):

  • यह अभ्रक का अशुद्ध रूप है।
  • इस शिवलिंग को बनाना बहुत कठिन होता है और वर्तमान समय में यह बहुत महंगा भी है।
  • वज्रदंती आजकल एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित धातु है, जिसे सरकारी अनुमति से ही खरीदा जा सकता है।
  • इसका कणीय अयन 23:12 होना चाहिए और घर के प्रयोग के लिए इसका वजन दो छटाक से अधिक नहीं होना चाहिए।